Wednesday, August 17, 2016

पुरातन से मैं आधुनिक हो गया, लेकिन लगता है इस दौर में भारत कहीं 

तो खो गया



मैंने तो हर वक़्त गैरों को यूँही अपनाया है। 

बेशक गोरों की तरह गैरों ने मुझको खाया है।

मेरे अपनों को लड़ाकर राज मुझपर था किया

जाते जाते मेरे दिल को फिर से घायल कर दिया।।

मजहबी रंगों में रंगकर, फिरसे मुझको काट दिया

सत्ता की खातिर बेटों ने भारत माँ को बाँट दिया।

मेरे ही बंटवारे में मुझ पर जो खूनी खेल हुआ

मेरी माटी में अपनों का फिर से रक्तिम मेल हुआ।।

वक़्त के आगे फिर से देखो मैं भारत लाचार हुआ

मेरे इन घावों पर अबतक ना हीं कोई विचार हुआ।



पुरातन से मैं आधुनिक हो गया, लेकिन लगता है इस दौर में भारत कहीं 

तो खो गया


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