Sunday, December 8, 2019

तुम्हे उदास सi पाता हूं







तुम्हे उदास सी पाता हूं मैं कई दिन से,
न जाने कौन से सदमे उठा रही हो तुम?

वो शोखियां वो तबस्सुम वो कहकहे न रहे
हर एक चीज को हसरत से देखती हो तुम।

छुपा-छुपा के खमोशी मे अपनी बेचैनी,
खुद अपने राज़ की तशहीर बन गई हो तुम।

मेरी उम्मीद अगर मिट गई तो मिटने दो,
उम्मीद क्या है बस इक पेशो-पस है कुछ भी नहीं।

मेरी हयात की गमगीनियों क गम न करो,
गमे-हयात गमे-यक-नफ़स है कुछ भी नहीं।

तुम अपने हुस्न की र‍अनाईयों पे रहम करो,
वफ़ा फ़रेब है तूले-हवस है कुछ भी नहीं।

मुझे तुम्हारे तगाफ़ुल से क्यों शिकायत हो,
मेरी फ़ना मेरे एहसास क तकाज़ा है।

मै जानता हूं कि दुनिया क खौफ़ है तुमको,
मुझे खबर है, ये दुनिया अज़ीब दुनिया है।

यहां हयात के पर्दे मे मौत पलती है,
शिकस्ते-साज की आवाज रुहे-नग्मा है।

मुझे तुम्हारी जुदाई का कोई रंज़ नहीं,
मेरे खयाल की दुनिया मे मेरे पास हो तुम।

ये तुमने ठीक कहा है, तुम्हे मिला ना करूं
मगर मुझे ये बता दो कि क्यों उदास हो तुम?

खफ़ा न होन मेरी ज़ुर्रते-तखातुब पर
तुम्हे खबर है मेरी जिंदगी की आस हो तुम?

मेरा तो कुच भी नहीं है, मै रो के जी लूंगा,
मगर खुदा के लिये तुम असीरे-गम न रहो,

हुआ ही क्या जो तुम को जमने से छीन लिया
यहां पे कौन हुआ है किसी का, सोचो तो,

मुझे कसम है मेरी दुख भरी जवानी की
मै खुश हूं, मेरी मुहब्बत के फ़ूल ठुकरा दो।

मै अपनी रूह की हर एक खुशी मिटा लूंगा,
मगर तुम्हारी मसर्रत मिटा नहीं सकता।

मै खुद को मौत के हांथों मे सौंप सकता हूं,
मगर ये बारे-मसाइब उठा नहीं सकता।

तुम्हारे गम के सिवा और भी तो गम हैं मुझे
निजात जिनमे मै इक लहज़ा पा नहीं सकता।

ये ऊंचे ऊंचे मकानों के ड्योढियों के तले,
हर एक गाम पे भूखे भिखारियों की सदा।

हर एक घर मे ये इफ़लास और भूख का शोर
हर एक सिम्त ये इन्सानियत की आहो बका।

ये करखानों मे लोहे क शोरो-गुल जिसमे,
है दफ़्न लाखों गरीबो की रूह का नग्मा।

ये शाहराहों पे रंगीन साडियों की झलक,
ये झोपडों मे गरीबों की बेकफ़न लाशें।

ये माल-रोड पे कारों की रेल-पेल का शोर,
ये पटरियों पे गरीबों के ज़र्द-रू बच्चे।

गली-गली मे ये बिकते हुए जवां चेहरे,
हसीन आंखों मे अफ़सुर्दगी सी छाई हुई।

ये जंग और ये मेरे वतन के शोख जवां,
खरीदी जाती है उठती जवानियां जिनकी।

ये बात-बात पे कनूनों-जाब्ते की गिरफ़्त,
ये ज़िल्लतें, ये गुलामी, ये दौरे मज़बूरी।

ये गम बहुत है मेरी ज़िन्दगी मिटाने को,
उदास रह के मेरे दिल को और रंज न दो।

फ़िर न कीजे मीरी गुस्ताख-निगाही का गिला
देखिये आपने फ़िर प्यारे से देखा मुझको।
साहिर लुधियानवी

Wednesday, July 24, 2019

"एक एहसान  कर दो
 मुझे बदनाम कर दो
 थम चुकी  सांसें
मुफलिसे भी बढ रही 
खत्म हो जाए ज़िन्दगी इससे
पहले  मोहब्बत  का एलान कर दो
एक एहसान  कर दो
मुझे बदनाम कर दो "||

Sunday, March 3, 2019

वजूद मेरा

 रिश्तों के  सारे  मंज़र  चुपचाप  देखता  हूँ
हाथों  में  सबके खंजर  चुपचाप  देखता  हूँ

ज़िसमें  पला  है  मेरे  बचपन  का  लम्हा  लम्हा
उज़डा  हुआ  सा  वो  घर  चुपचाप  देखता  हूँ

धरता  है  कितने  तोहमत*  मुझपे  वजूद मेरा
जब  भी  मैं  दिल  के  अंदर  चुपचाप  देखता  हूँ

ओढ़े हैं कई किरदार मैने दुनिया के
वो  रहगुजर जो कभी मंजिल  की  ईब्दिता* हुआ करते थे
उसको  मैं  अब  फलटकर  चुपचाप देखता हूँ

[1.तोहमत= झूठे आरोप ]
[2.ईब्दिता= प्रारम्भिक ]


Friday, March 1, 2019

हमको समुंदर का ख़ौफ़ न दो जनाब 
हमने हंसते गालों में भंवर देखे हैं

Wednesday, February 20, 2019

सपनों को सच कर दिखाएँ

एक नई सोच की ओर कदम बढ़ाएँ
हौसलों से अपने सपनों की ऊंचाइयों को छू कर दिखाएँ
जो आज तक सिमट कर रह गई थी
ख्यालों में उन सपनों को सच कर दिखाएँ


जब नाव जल में छोड़ दी
तूफ़ान में ही मोड़ दी
दे दी चुनौती सिंधु को
फिर धार क्या मझधार क्या

कह मृत्यु को वरदान ही
मरना लिया जब ठान ही
फिर जीत क्या फिर हार क्या

जब छोड़ दी सुख की कामना
आरंभ कर दी साधना
संघर्ष पथ पर बढ़ चले
पिर फूल क्या अंगार क्या

संसार का पी पी गरल
जब कर लिया मन को सरल
भगवान शंकर हो गए
फिर राख क्या श्रृंगार क्या ।

Tuesday, January 8, 2019

कोई दग़ा दे गया

दुनिया को क्या बताऊँ कि क्या दे गया मुझे,
रातों को जागने की सज़ा दे गया मुझे
कश्ती मेरी भँवर से निकल आई थी मगर,
साहिल पे लाके कोई दग़ा दे गया मुझे।                        
दुनिया को क्या बताऊँ कि क्या दे गया मुझे,
रातों को जागने की सज़ा दे गया मुझे
कश्ती मेरी भँवर से निकल आई थी मगर,
साहिल पे लाके कोई दग़ा दे गया मुझे।

आज नहीं तो कल होगा

हर एक संकट का हल होगा, वो आज नहीं तो कल होगा माना कि है अंधेरा बहुत और चारों ओर नाकामी माना कि थक के टूट रहे और सफर अभी  दुरगामी है जीवन ...