"की मुखरे पर धूल लगी माना,
माथा फूटा माना लेकिन
गालों पर थप्पड़ खाये है
जबरा टूटा माना लेकिन
माना की साँसें उखड़ रही
और धक्का लगता धड़कन से,
लो मान लिया की कांप गया
पूर्ण बदन अंतरमन से
पर आँखों से अंगारे मै नथुनो से तूफा लाऊंगा
मैं गिर गिर कर भी धरती पर हर बार खड़ा हो जाऊँगा
मुठ्ठी में भींच लिया तारा तुम नगर में ढोल पिटा दो जी
की अँधेरे हो लाख घने पर अँधेरे अनंत नहीं
गिर जाना मेरा अंत नहीं "
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आज नहीं तो कल होगा
हर एक संकट का हल होगा, वो आज नहीं तो कल होगा माना कि है अंधेरा बहुत और चारों ओर नाकामी माना कि थक के टूट रहे और सफर अभी दुरगामी है जीवन ...

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बुलंदी का नशा संतों के जादू तोड़ देती है, हवा उड़ते हुए पंछी के बाज़ू तोड़ देती है ! सियासी भेड़ियों थोड़ी बहुत गैरत ज़रूरी है, तवायफ तक किसी म...
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मैं कोई मुल्क नहीं हूं कि जला दोगे मुझे कोई दीवार नहीं हूं कि गिरा दोगे मुझे कोई सरहद भी नहीं हूं कि मिटा दोगे मुझे यह जो दुनिया ...
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हर एक संकट का हल होगा, वो आज नहीं तो कल होगा माना कि है अंधेरा बहुत और चारों ओर नाकामी माना कि थक के टूट रहे और सफर अभी दुरगामी है जीवन ...
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