Wednesday, March 28, 2018

अँधेरी रात के गुमराह जुगनुओं के लिए

मैं जब चलूँ तो ये दौलत भी साथ रख देना
मेरे बुज़ुर्ग मेरे सर पे हाथ रख देना

ढलेगा दिन तो सुलगने लगेगा दिल मेरा
मुझे भी घर के चरागों के साथ रख देना

ये आने वाले ज़मानों के काम आएंगे
कहीं छुपा के मेरे तजुर्बात रख देना

अँधेरी रात के गुमराह जुगनुओं के लिए
उदास धुप की टहनी पे रात रख देना

मैं एक सच हूँ अगर सुन सको तो सुनते रहो
गलत कहूं तो मेरे मुंह पे हाथ रख देना
#raahat

लाल और हरे में मत बांटो

न मस्जिद को जानते हैं ,
न शिवालों को जानते हैं
जो भूखे पेट होते हैं, वो सिर्फ निवालों को जानते हैं.
मेरा यही अंदाज ज़माने को खलता है.
की मेरा चिराग हवा के खिलाफ क्यों जलता है……
में अमन पसंद हूँ, मेरे शहर में दंगा रहने दो…
लाल और हरे में मत बांटो
, मेरी छत पर तिरंगा रहने दो
#bhagat


दुनिया के मजदूरों एकजुट हो जाओ ; तुम्हारे पास  खोने को कुछ भी नहीं है ,सिवाय अपनी जंजीरों के
...कार्ल मार्क्स
ज़िन्दगी दो दिन की है
एक दिन आपके पक्ष में , और जिस दिन आपके पक्ष में हो तो गुरूर ना करना
और दूसरा दिन आपके खिलाफ और जिस दिन आपके खिलाफ में हो तो सब्र  रखना ||

अगर कोई आपसे नफरत करता है तो
इसके दो कारण हो सकते हैं
एक ऐसा कुछ जो आपके है उसे पसंद नहीं  या
 दूसरा आपके पास कुछ ऐसा है जो उसके पास नहीं !!

मैं कौन हूँ

कोई ये बतादे,
मैं हूँ कहाँ,
कोई तो बतादे,
मेरा पता,

सही है के नही,
मेरी ये डगर,
लून के नही मैं,
अपना ये सफ़र,

डर लगता हैं सपनो से,
कर्दे ना यह तबाह,
डर लगता है अपनो से,
देदे ना ये दागा,

मैं चाँद हूँ या दाग हूँ,
मैं राख हूँ या आग हूँ,
मैं बूँद हूँ या हूँ लेहर,
मैं हूँ सकूँ या हूँ कहर..

कोई ये बतादे,
मैं कौन हूँ?
क्यू हूँ मैं क्या हूँ,
मैं कौन हूँ?

यकीन है के नहीं,
खुद पे मुझको क्या?
हूँ के नही मैं,
है फराक पड़ता क्या?

किसके कंधो पे रोऊँ,
हो जाए जो ख़ाता,
किसको राहों में ढूनडूं,
खो जाए जो पता,

मैं चाँद हूँ या दाग हूँ,
मैं राख हूँ या आग हूँ,
मैं बूँद हूँ या हूँ लेहर,
मैं हूँ सकूँ या हूँ कहर..

हे..हे..हे..हे..

मैं कौन हूँ?
#secret_superstar


बुलंदी का नशा

बुलंदी का नशा संतों के जादू तोड़ देती है,
हवा उड़ते हुए पंछी के बाज़ू तोड़ देती है !
सियासी भेड़ियों थोड़ी बहुत गैरत ज़रूरी है,
तवायफ तक किसी मौके पे घुंघरू तोड़ देती है !

Tuesday, March 27, 2018

बुलंदी का नशा संतों के जादू तोड़ देती है,
हवा उड़ते हुए पंछी के बाज़ू तोड़ देती है !
सियासी भेड़ियों थोड़ी बहुत गैरत ज़रूरी है,
तवायफ तक किसी मौके पे घुंघरू तोड़ देती है !
बेड़यिां जितनी मजबूत हों उडऩे का उतना ही मन करता है।

अब तो पथ यही ह

जिंदगी ने कर लिया स्वीकार,
अब तो पथ यही है|
अब उभरते ज्वार का आवेग मद्धिम हो चला है,
एक हलका सा धुंधलका था कहीं, कम हो चला है,
यह शिला पिघले न पिघले, रास्ता नम हो चला है,
क्यों करूँ आकाश की मनुहार ,
अब तो पथ यही है |

क्या भरोसा, काँच का घट है, किसी दिन फूट जाए,
एक मामूली कहानी है, अधूरी छूट जाए,
एक समझौता हुआ था रौशनी से, टूट जाए, 
आज हर नक्षत्र है अनुदार,
अब तो पथ यही है
यह लड़ाई, जो की अपने आप से मैंने लड़ी है,
यह घुटन, यह यातना, केवल किताबों में पढ़ी है,
यह पहाड़ी पाँव क्या चढ़ते, इरादों ने चढ़ी है,
कल दरीचे ही बनेंगे द्वार,
अब तो पथ यही है |
#Dushyant


उनके ख़ाले - आरिज़ पे न मरे होते
 तो शर्तिया अभी  हम  और  जिए होते

 (ख़ाले-आरिज़ = गाल का तिल)

मेरी पहचान

"कि ख्वाबों कि तरह #हकीकत मेँ  बुना जाए मुझे,
कोई #मुश्किल कि घडी हो तो चुना जाए मुझे,
सिर्फ कलम ही #पहचान नहीं है मेरी,
मेरी #कलम से आगे भी लिखा जाए मुझे ||

मैं

“पराए आँसुओं से आँख को नम कर रहा हूँ मैं ,
भरोसा आजकल खुद पर भी कुछ कम कर रहा हूँ मैं ,
बड़ी मुश्किल से जागी थी ज़माने की निगाहों में ,
उसी उम्मीद के मरने का मातम कर रहा हूँ मैं ..!”
#drkv
इंसान का विकास इस बात पे निर्भर करता है
कि उसका सलाहकार कौन है य़ा
वो सलाह  किससे लेता है

दिल आखिर तू क्यूँ रोता है

जब  जब  दर्द  का  बादल  छाया
जब  ग़म  का  साया  लहराया
जब  आंसू  पलकों तक  आया
जब  यह  तनहा  दिल  घबराया
हमने  दिल  को  यह  समझाया
दिल  आखिर  तू  क्यूँ रोता  है
दुनिया  में यूँही  होता  है
यह  जो  गहरे  सन्नाटे  हैं
वक़्त  ने  सबको  ही  बांटे  हैं
थोडा  ग़म  है  सबका  किस्सा
थोड़ी धूप  है  सबका  हिस्सा
आँख  तेरी  बेकार  ही  नम  हैं
हर  पल  एक  नया  मौसम  है
क्यूँ तू  ऐसे  पल  खोता  है
दिल  आखिर  तू  क्यूँ रोता  है
#ZINDAGI_NA_MILEGI_Dobara
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मैं कोई मुल्क नहीं हूं




मैं कोई मुल्क नहीं हूं
कि जला दोगे मुझे
कोई दीवार नहीं हूं कि गिरा दोगे मुझे
कोई सरहद भी नहीं हूं कि मिटा दोगे मुझे
यह जो दुनिया का पुराना नक्शा
मेज पर तुमने बिछा रक्खा है
इसमें कावाक लकीरों के सिवा कुछ भी नहीं
तुम मुझे इसमें कहा ढूंढते हो
मैं इक अरमान हूं दीवानों का
सख्त—जां ख्वाब हूं कुचले हुए इंसानों का
लूट जब हद से सिवा होती है
जुल्म जब हद से गुजर जाता है
मैं अचानक किसी कोने में नजर आता हूं
किसी सीने से उभर आता हूं मैं ||
#osh

आज नहीं तो कल होगा

हर एक संकट का हल होगा, वो आज नहीं तो कल होगा माना कि है अंधेरा बहुत और चारों ओर नाकामी माना कि थक के टूट रहे और सफर अभी  दुरगामी है जीवन ...